महामृत्युंजय मंत्र
शब्दों का एक खास क्रम है जो उच्चारित होने पर एक खास किस्म का स्पंदन पैदा
करते हैं, जो हमें हमारे द्वारा उन स्पंदनों को ग्रहण करने की विशिष्ट
क्षमता के अनुरूप ही प्रभावित करते हैं। हमारे कान शब्दों के कुछ खास किस्म
की तरंगों को ही सुन पाते हैं।
महामृत्युंजय मंत्र का जाप
रोज
रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र के 108 जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत)
का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं,
इसके अलावा 8 तरह के दोषों का नाश करके, सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते
हैं।
महा मृत्युंजय मंत्र या मृत संजीवनी मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र जिसे मृत संजीवनी मंत्र भी कहते हैं. ॐ
हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं
हौं ॐ। शास्त्रों के अनुसार, इस मंत्र का जाप करने से मरते हुए व्यक्ति को भी जीवन दान मिल सकता है.
महामृत्युंजय मंत्र का बीज मंत्र
ॐ
स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! रोगों से मुक्ति के लिए यूं तो
महामृत्युंजय मंत्र विस्तृत है लेकिन आप बीज मंत्र के स्वस्वर जाप करके
रोगों से मुक्ति पा सकते हैं। इस बीज मंत्र को जितना तेजी से बोलेंगे आपके
शरीर में कंपन होगा और यही औषधि रामबाण होगी। जाप के बाद शिवलिंग पर काले
तिल और सरसो का तेल ( तीन बूंद) चढाएं।
महामृत्युंजय मंत्र सुनने से लाभ
शिवपुराण
के अनुसार, इस मंत्र के जप से मनुष्य की सभी बाधाएं और परेशानियां खत्म हो
जाती हैं। महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष,
कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा कई दोषों
का नाश होता है।
महामृत्युंजय जाप कितने दिन करना चाहिए?
सामान्यतः
यह जप संख्या कम से कम 45 और अधिकतम 84 दिनों में पूर्ण हो जानी चाहिए।
प्रतिदिन की जप संख्या समान अथवा बढ़ते हुए क्रम में होनी चाहिए। जप संख्या
पूर्ण होने पर उसका दशांश हवन करना चाहिए अर्थात 1,25,000 मंत्रों के जप
के लिए 12, 500 मंत्रों का हवन करना चाहिए और यथा शक्ति पांच ब्राह्मणों को
भोजन कराना चाहिए।
महामृत्युंजय मंत्र कैसे किया जाता है?
महामृत्युंजय
मंत्र का जाप करते समय एवं सभी सभी पूजा-पाठ करते समय अपना मुख पूर्व दिशा
की ओर ही रखें। अगर आप शिवलिंग के पास बैठकर जाप कर रहे हैं तो जल या दूध
से अभिषेक करते रहें। जाप करने के लिए एक शांत स्थान का चुनाव करें, जिससे
जाप के समय मन इधर-उधर न भटके। जाप के समय उबासी न लें और न ही आलस्य करें।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे का अर्थ क्या है?
ॐ
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ हिंदी में इसका अर्थ है- हम त्रिनेत्र को पूजते
हैं, जो सुगंधित हैं और हमारा पोषण करते हैं। जैसे फल शाखा के बंधन से
मुक्त हो जाता है वैसे ही हम भी मृत्यु और नश्वरता से मुक्त हो जाएं।
मृत्युंजय मंत्र कितने प्रकार के हैं?
मृत्युंजय
जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक,
मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में
विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र
और महामृत्युंजय मंत्र।
महामृत्युंजय मंत्र का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
महामृत्युंजय
मंत्र का जाप कम से कम सवा लाख बार किया जाना चाहिए, लेकिन कम से कम 108
बार इसका जाप सावन में जरूर करना चाहिए। भगवान शिव का प्रसन्न करने के लिए :
इस मंत्र से भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होंते हैं। सावन में इसका जप
करने से मनचाहा वरदान प्राप्त होता हैं।
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