अद्भुत, मंत्रमुग्ध कर देने वाला शिव तांडव स्त्रोत सुनकर आपका चित प्रसन्न हो जायेगा BHU के दृष्टिबाधित छात्र 'इंद्रजीत की सुन्दर, मनमोहक इस मधुर वाणी में शिव तांडव स्त्रोतम को सुनकर। जिसके नेत्र स्वयं शिव बन चुके हैं उसे मानवीय नेत्रों की कोई आवश्यकता नहीं है। अद्भुत ,सर्वश्रेष्ठ, मंत्रमुग्ध कर देने वाला यह संपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र सुनकर अत्यंत आनंद आ गया होगा ।
शिव तांडव स्त्रोत कब पढ़ना चाहिए?
शिव तांडव स्तोत्र का पाठ प्रातः काल या प्रदोष काल करना चाहिए। सबसे पहले स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें। शिव जी को प्रणाम करें और धूप, दीप और नैवेद्य से उनका पूजन करें। रावण ने पीड़ा के कारण इस स्तोत्र को बहुत तेज स्वर में गाया था।
शिव तांडव स्त्रोत का पाठ कैसे करे?
- सबसे पहले स्नानादि करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद ही इसका पाठ करें। - शिवजी की चित्र, तस्वीर या मूर्ति के समक्ष प्रणाम करने के बाद उनकी पूजा करने के बाद पाठ करें। - यह पाठ उच्च स्वर में भी कर सकते हैं। - पाठ पूर्ण होने के बाद शिवजी का ध्यान करें और फिर उनकी आरती करें।
शिव तांडव में कुल कितने श्लोक हैं?
देखा जाए तो रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्त्रोत में कुल 17 श्लोक हैं.
शिव तांडव के रचयिता कौन है?
अपने लिए इतना खूबसूरत संगीत सुन महादेव रावण से प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपना पंजा पहाड़ के ऊपर से हटा लिया. इसलिए लंकेश रावण को शिव तांडव का रचयिता कहा जाता है.
तांडव कितने प्रकार के होते हैं?
हिंदू ग्रंथों में पाए जाने वाले तांडव के प्रकार हैं: आनंद तांडव, त्रिपुरा तांडव, संध्या तांडव, समारा तांडव, काली (कालिका) तांडव, उमा तांडव, शिव तांडव, कृष्ण तांडव और गौरी तांडव।
शिव तांडव में कौन सा छंद है?
शिव तांडव स्तोत्र भोलेनाथ के परम भक्त विद्वान् रावण द्वारा रचित एक स्तोत्र है। यह स्तुति पंचचामर छंद में है।
भगवान शिव ने तांडव क्यों किया?
ऐसा में जब शिवजी को क्रोध आता है तो वे तांडव नृत्य करते हैं और जब क्रोध वे ते अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं तो जो भी सामने होता है वह भस्म हो जाता है। परंतु दूसरा जब वे डमरू बजाते हुए तांडव करते हैं तो इसका अर्थ यह है कि वे आनंदित हैं, प्रकृति में आनंद की बारिश हो रही है। ऐसे समय में शिव परम आनंद से पूर्ण रहते हैं।
लास्य और तांडव से आप क्या समझते हैं?
विशेष—साधरणतः स्त्रियों का नृत्य ही लास्य कहलाता है । कहते है, शिव और पर्वती ने पहले पहल मिलकर नृत्य किया था । शिव का नृत्य तांडव कहलाया और पार्वती का 'लास्य' ।
भगवान शिव के लिए पवित्र माने जाने वाले नृत्य पैटर्न कौन से हैं?
भगवान भोलेनाथ दो तरह से तांडव नृत्य करते हैं। पहला जब वो गुस्सा होते हैं, तब बिना डमरू के तांडव नृत्य करते हैं। लेकिन दूसरे तांडव नृत्य करते समय जब, वह डमरू भी बजाते हैं तो प्रकृति में आनंद की बारिश होती थी। ऐसे समय में शिव परम आनंद से पूर्ण रहते हैं।
0 Comments