श्रीमद्द देवी भागवत में राजा सुद्युम्न को किस प्रकार मां भगवती ने उनका उद्धार किया

मां भगवती की कृपा जिन लोगों पर होती है, उनके सभी कष्ट मिट जाते हैं और उनका उद्धार हो जाता है। आज हम आपको देवी भगवत पुराण की एक कथा सुनाते हैं, जिसमें राजा सुद्युम्न शापित वन में अपने मंत्रियों सहित जाता है और सभी स्त्री बन जाते हैं। फिर किस प्रकार मां भगवती ने उनका उद्धार किया, सुने य​ह कथा।


एक समय की बात है भगवान शिव भगवती उमा के साथ क्रीड़ा में लीन थे। तभी वहां पर भगवान शिव के दर्शन करने के लिए ऋषि मुनि पहुंचे। उनको देखकर भगवती उमा लज्जित हो गईं। वे वहां से उठकर दूसरी ओर बैठ गईं। उनका शरीर कांपने लगा। इस बीच ऋषि मुनि उन दोनों के आनंद का समय देखकर विष्णु लोक चले गए। पार्वती जी को लज्जित होते देखकर भगवान शिव ने कहा कि तुम इतनी लज्जित क्यों होती हो। आज से कोई भी पुरुष यदि मोहवश इस वन में पैर रखेगा तो वह स्त्री हो जाएगा। इस तरह भगवान शिव ने उस वन को शाप दे दिया। इसके बाद से उस वन में कोई नहीं जाता था।

एक दिन राजा सुद्युम्न अपने मंत्रियों समेत इस वन में प्रवेश कर गए। उनको इस वन के शाप के बारे में ज्ञात नहीं था। शाप के अनुसार, राजा मंत्रियों समेत स्त्री बन गए। अब लज्जा के कारण वे घर नहीं लौट सके। वन से निकलकर वे बाहर घूमने लगे। स्त्री होने के कारण उनका नाम इला पड़ गया। इला बहुत ही सुंदर थी और उसके सा​थ कई और स्त्रियां थीं। बुध उन पर मोहित हो गए और इला भी उनको अपना पति स्वीकार करने के लिए राजी हो गईं। बुध ने इला के गर्भ से पुरूरवा को उत्पन्न किया।

इला वन में चिंतित रहती थीं। एक दिन उन्होंने अपने कुल के आचार्य मुनिवर वशिष्ठ जी को याद किया। वशिष्ठ जी ने उनकी पीड़ा समझकर भगवान शिव की आराधना की। वशिष्ठ जी ने अपने प्रिय राजा सुद्युम्न को फिर से पुरुष बनाने की विनती की। तब भगवान शिव ने कहा कि वह एक मास पुरुष और एक मास स्त्री रहेगा। भगवान शिव के आशीष से इला ए​क मास के लिए राजा सुद्युम्न हो गईं। राजा सुद्युम्न अपने राज्य में दोबारा आए और एक मास जब स्त्री रहते तो महल के अंदर रहते तथा पुरुष होने पर एक मास राज का शासन देखते थे।

पुत्र पुरूरवा के बड़े होने पर उन्होंने उसे गद्दी पर बैठा दिया और स्वयं वन चले गए। वहा। पर उन्होंने नारद जी से नवाक्षर मंत्र की दीक्षा ली। उसके बाद वे प्रेमपूर्वक उस मंत्र का जाप करने लगे। उनकी तपस्या से मां भगवती योगमाया प्रसन्न हुईं। वे दिव्यता से पूर्ण, पूरे जगत को आलोकित कर देने वाली थीं। दिव्य तेज वाले मुखमंडल को देखकर राजा सुद्युम्न यानी इला प्रसन्न हुईं और माता की स्तुति आरंभ कर दी। उन्होंने माता को प्रणाम किया और उनसे विनती की कि उन पर आपकी कृपा सदा बनी रहे। मां भगवती प्रसन्न होकर राजा सुद्युम्न को अपने धाम भेज दिया। वे माता जगदम्बिका की कृपा से उस स्थान के अधिकारी हो गए, जहां पर जाने के लिए देवता भी लालायित होते हैं। इस प्रकार पुरुष से स्त्री बने राजा सुद्युम्न का उद्धार हो गया और वे जीवन मरण के चक्र से भी मुक्त हो गए।  


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