नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की परंपरा


अपने आप में गुड़िया पीटने की यह अनोखी परंपरा उत्तरप्रदेश में हर वर्ष सावन मास में नागपंचमी के दिन मनायी जाती है. बहने घर के पुराने कपड़ों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर फेंकती है और समूह में खड़े भाइयों की टोली जो अपने हाथो में नीम के डंडे से इतना पीटते है की वह गुड़िया फट जाती है. फिर गुडिया पीटने के बाद बहने अपने भाई को पान खिलाती है और घर आकार गुझिया खाने को मिलती है. आइये जानते है इस परम्परा के पीछे कहानी क्या है. 

भाई-बहन की एक कथा के मुताबिक, भाई, भगवान भोलेनाथ का भक्त था। वह प्रतिदिन भगवान् भोलेनाथ के मंदिर जाता था जहां उसे एक नागदेवता के दर्शन होते थे। वह लड़का रोजाना उस नाग को दूध पिलाने लगा। धीरे-धीर दोनों में प्रेम बढ़ने लगा और लड़के को देखते ही सांप अपनी मणि छोड़कर उसके पैरों में लिपट जाता था।

एक बार सावन का महीना था। बहन, भाई के साथ मंदिर जाने के लिए तैयार हुई। वहां रोज की तरह सांप अपनी मणि छोड़कर भाई के पैरों मे लिपट गया। बहन को लगा कि सांप भाई को डस रहा है। इस पर उसने डलिया सांप पर दे मारी और उसे पीट-पीटकर मार डाला। भाई ने जब अपनी बहन को पुरी बात बताई तो वह रोने लगी और पश्चाताप करने लगी। लोगों ने कहा कि सांप देवता का रूप होते हैं इसलिए बहन को दंड जरूरी है। लेकिन बहन ने भाई की जान बचाने के लिए सांप को मारा था, इसलिए बहन के रूप में यानी गुड़िया को हर काल में दंड भुगतना पड़ेगा। तभी से गुड़िया को पीटने की पंरपरा निभायी जाने लगी।

एक दूसरी कथा के मुताबिक कहते हैं- तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।

तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परंपरा शुरू हुई।

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