पर्यटकों की शनि सिद्धपीठ आस्था का केंद्र "कोकिलावन"

कोकिलावन में कोयल बन शनि ने कान्हा दर्शन किए थे, मात्र घास बांध देने से टल जाती है भक्तों की हर विपदा



कोकिलावन शनि सिद्धपीठ पर्यटकों की आस्था का केंद्र है। कोकिलावन शनि सिद्धपीठ भारत में उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में स्थित है। कोसी से लगभग छ: किलोमीटर दूर पश्चिम में बरसाना के पास और नन्द गांव से सटा हुआ यह पवित्र स्थान भगवान शनि देव को समर्पित है। ब्रज में यूं तो कर्इ जगह ऐसी हैं जहां गए श्रद्घालु उन स्थलों से जुड जाते हैं। लेकिन मात्र दो घास के तिनकों को बांध देने से यदि किसी की विपदाएं टल जाएं ऐसी मान्यता आपने शायद ही सुनी होगी। हम जिस स्थल के बारे में बात कर रहे हैं वह न के केवल श्रीकूष्ण द्वारा शनिदेव को दर्शन देने वाले वाकए से जुडाृ है बल्कि यही वो जगह है जहां तहे दिल से आने वाले लोगों को शनिदेव से किसी भी पीडा का डर नहीं रहता। हर शनिवार यहां हजारों की संख्या में श्रद्घालु आते हैं और सवा कोस की परिक्रमा लगाते हैं। खत्म करने के दौरान कच्ची पगडडिंयों में पडने वाली दूर्वा घास-फूंस की गांठ लगार्इ जाती है। कोकिलावन धाम का यह सुन्दर परिसर लगभग 20 एकड में फैला है। इसमें श्री शनि देव मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर, श्री गोकुलेश्वर महादेव मंदिर , श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर प्रमुख हैं। यहां दो प्राचीन सरोवर और गोऊ शाला भी हैं।

माता यशोदा ने क्यों नहीं करने दिया शनि को कृष्ण दर्शन:
जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पधारे। कृष्णभक्त शनिदेव भी देवताओं संग श्रीकृष्ण के दर्शन करने नंदगांव पहुंचे। परंतु मां यशोदा ने उन्हें नंदलाल के दर्शन करने से मना कर दिया क्योंकि मां यशोदा को डर था कि शनि देव कि वक्र दृष्टि कहीं कान्हा पर न पड़ जाए। परंतु शनिदेव को यह अच्छा नहीं लगा और वो निराश होकर नंदगांव के पास जंगल में आकर तपस्या करने लगे। शनिदेव का मानना था कि पूर्णपरमेश्वर श्रीकृष्ण ने ही तो उन्हें न्यायाधीश बनाकर पापियों को दण्डित करने का कार्य सोंपा है। तथा सज्जनों, सत-पुरुषों, भगवत भक्तों का शनिदेव सदैव कल्याण करते है।

शनि ब्रज में विराजे, कान्हा ने पूरी की तमन्ना
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर में जब श्रीकृष्ण रास रचाते थे तो देवी-देवता विचलित हो जाते थे। उनकी इच्छा होती थी कि वे भी आनन्द कन्द भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में शरीक हों। इसके लिए उन्हें सीधे तो मौका नहीं मिलता था लेकिन वे किसी न किसी सहारे छिप कर गोपियाें का नृत्य देखते थे। ऐसे ही जिज्ञासु शनिदेव थे जिन्होने भगवान् कृष्ण की क्रीडा देखने की सोची। बताते हैं कि वे ब्रज की इसी जगह (कोकिलावन) एक पेड़ पर कोयल बन कर बैठ गए और तब दर्शन सफल हुए। कहते हैं उनके रूप की वजह से कोयल के नाम पर कोकिलावन कहलाने लगी। ब्रज वासियों के लिए उन्हें यहं मंदिरों में स्थापत्य भी करना पडा़। तब से ही शनिदेव की कृपा यहां बनी हुर्इ है।

विशाल तमाल वृक्ष के नीचे होता था महारास

भगवान श्री कृष्ण और राधा अक्सर यमुना तट पर बांके बिहारी मंदिर से महज कुछ किलोमीटर की दूरी पर बसे निधि वन में मिला करते थे। इस स्थान पर भगवान ने महारास का आयोजन किया था। इस कोकिलावन में मौजूद वृक्षों को देखकर ऐसा लगता है जैसे मनुष्य नृत्य की मुद्रा में हो। माना जाता है कि नृत्य मुद्रा में मौजूद वृक्ष गोपियां हैं हो हर रात मनुष्य रूप धारण कर कृष्ण संग रास का आनंद लेती हैं। इसी वन में मौजूल तमाल का एक वृक्ष था जिसके करीब राधा कृष्ण मिलते थे। कृष्ण के मथुरा जाने के बाद राधा इसी वृक्ष को कृष्ण समझकर इसका आलिंगन किया करती थी।

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