मंदिर का इतिहास
मंदिर के पास में
एक प्राचीन शिलालेख है। वहाँ शारदा देवी के साथ भगवान नरसिंह की एक मूर्ति है। इन मूर्तियों
नुपुला देवा द्वारा शेक 424 चौत्र कृष्ण पक्ष पर 14 मंगलवार, विक्रम संवत् 559 अर्थात
502 ई. स्थापित किया गया। देवनागिरी लिपि मे चार पंक्तियों वाली यह षिलालेख ‘‘3.5‘‘
से 15 आकार की है। मंदिर मे एक और षिलालेख शैव संत जिससे पता चलता है कि उस समय जैन
धर्म का भी ज्ञान था यह षिलालेख 34 31‘‘ आकार का है। माता शारदा की मूर्ति की स्थापना
विक्रम संवत 559 को की गई है। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। इसमें
बताया गया है कि सरस्वती के पुत्र दामोदर ही कलियुग के व्यास मुनि कहे जाएगें। दुनिया
के जाने माने इतिहासकरा ए कनिंग्घम ने इस मंदिर पर विस्तार में शोध किया है। इस मंदिर
में प्राचीन काल से ही बलि देने की प्रथा चली आ रही थी। लेकिन 1922 में सतना के राजा
ब्रजनाथ जूदेव ने पशु बलि को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया। यह एक बहुत ही प्राचीन
एवं प्रसिद्ध मंदिर है, मैहर नगरी से 5 किलोमीटर दूर त्रिकुट पर्वत पर माता शारदा देवी
का वास है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 1063 सीढ़ियां तय करना होता है। पर्वत
की चोटी के मध्य में ही शारदा माता का मंदिर स्थापित है। हालांकि पिछले साल से यहां
रोप वे की शुरुआत कर दी गई है, जिससे वृद्धों और शारीरिक तौर पर विकलांग लोगों को माता
के दर्शन करने में मुश्किल न आये। क्षेत्रीय परंपरा के मुताबिक अल्हा और उदल जिन्होंने
पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, जिसमे उदल की मृत्यु हो गई थी। दोनो भाई शारदा
माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी
के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी
को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था। आल्हा माता को शारदा
माई कह कर पुकारा करता था और तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध
हो गया। आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा ही करते
हैं। मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है। यही
नहीं तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता
है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे।
यातायात के साधन
मैहर मध्यप्रदेश
के सतना जिले मे आता है यह राट्रीय राजमार्ग क्रमांक 7 से जुड़ा है। रेल यातायात मे
महाकौशल एक्सप्रेस दिल्ली हजरत निजामुद्दीन से सीधा संपर्क है। यह जबलपुर से 162 किमी
की दूरी पर है और कटनी जंक्षन से 62 किमी है। सतना जिला से 40 किमी पर स्थित है।
मैहर घराने
हिंदुस्तानी शस्त्रीय
संगीत मे मैहर घराने एक प्रमुख स्थान रखता है। संगीत की द्रुपदशैली का जन्म इसी घराने
मे हुआ है। उस्ताद अलाउद्दीन खान (1972 मृत्यु हो गई) इस शैली के सबसे बड़े दिग्गज
थे। लंबे समय तक उन्होने यहॉ निवास किया। उनका जन्म त्रिपुरा { अब पष्चिम बंगाल मे
} 1862 में हुआ। मैहर के महाराजा के दरबार संगीतकार, और उसके छात्रों में श्रीमती अन्नपूर्णा
(अलाउद्दीन खान की बेटी) देवी, उस्ताद अली अकबर खान (अलाउद्दीन खान के पुत्र), पंडित
रवि (संगीतकार) शंकर, उस्ताद आशीष खान (अलाउद्दीन खान के पोते), उस्ताद ध्यानेश खान
(अलाउद्दीन खान 2 पोता), उस्ताद प्रणेश खान (अलाउद्दीन खान के पोते 3), उस्ताद बहादुर
खान (अलाउद्दीन खान के भतीजे), ज्पउपत बारां भट्टाचार्य (अलाउद्दीन खान के पहले छात्र)
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