देवी भागवत प्रथम स्कंध अध्याय- 9 :-
देव। सुरश्रेष्ठ। विभो। हम दोनों आप के द्वारा एक ही सुविधा चाहते हैं। वह यह है कि आप इस खुले आकाश में ही हमारा वध कीजिये। सुन्दर नेत्रों वाले देवेश्रवर। हम दोनों आप के पुत्र हों। हमने आप से यही वर मांगा है। आप इसे अच्छी तरह समझ ले। सुरश्रेष्ठ देव। हम ने जो प्रतिज्ञा की है, वह असत्य नहीं होनी चाहिये। श्री भगवान बोले- बहुत अच्छा, मैं ऐसा ही करुंगा यह सब कुछ होगा। भगवान विष्णु ने बहुत सोचने पर जब कहीं खुला आकाश न देखा और स्वर्ग अथवा पृथ्वी भी जब उन्हें कोई खुली जगह न दिखायी दी, तब महायशस्वी देवेश्रवर मधुसूदन ने अपनी दोनों जांघों को अनावृतदेखकर मधु और कैटभ के मस्तकों को उन्हीं पर रखकर तीखी धार वाले चक्र से काट डाला।
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भगवान विष्णु ने दैत्यों के
मस्तकों को अपने जांघों पर रखवाकर सुदर्शन चक्र से काट डाला। इस प्रकार मधु
और कैटभ का अन्त हुआ। तभी से विष्णु 'मधुसूदन' और 'कैटभजित्' कहलाए।
'मार्कण्डेय पुराण' के अनुसार उमा ने कैटभ को मारा था, जिससे वे 'कैटभा'
कहलाईं। महाभारत और हरिवंश पुराण का मत है कि इन असुरों के मेदा के ढेर के
कारण पृथ्वी का नाम 'मेदिनी' पड़ा था। पद्मपुराण के अनुसार देवासुर संग्राम
में ये हिरण्याक्ष की ओर थे।
1 Comments
bahut badiya jankari
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