नवरात्रि आते ही
हर तरफ गरबा और डांडिया की धूम शुरू हो जाती है। पारंपरिक अंदाज में सजे हर उम्र
के लोग गरबा का जमकर लुत्फ उठाते हैं। गरबा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है और
अश्विन मास की नवरात्रों को गरबा नृत्योत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान
सभी लोग पारंपरिक परिधान पहनते हैं। लड़कियां चनिया-चोली पहनती हैं और लड़के
गुजराती केडिया पहनकर सिर पर पगड़ी बांधते हैं।
आदिशक्ति मां
अंबे और दुर्गा की आराधना के साथ ही दस दिनों तक समूचा डांडिया देवी पूजा के रंग
में रंगा नजर आएगा. लोगों को इस बार नवरात्र मनाने और गरबा करने के लिए दस दिन
मिलेगा. पंचांग के अनुसार एक और दो अक्टूबर को पडवा (एकम) एक ही तिथि दो दिन पड़
रहा है.
आपको बता दें कि
वैसे तो गरबा गुजरात, राजस्थान और
मालवा प्रदेशों में प्रचलित एक लोकनृत्य है लेकिन इसे करने वाले सबसे ज्यादा
गुजराती होंते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मां दुर्गा को काफी पसंद हैं
इसलिए नवरात्रि के दिनों में इस नृत्य के जरिये मां को प्रसन्न करने की कोशिश की
जाती है।
गरबा का संस्कृत
नाम गर्भ-द्वीप है। गरबा के आरंभ में देवी के निकट सछिद्र कच्चे घट को फूलों से
सजा कर उसमें दीपक रखा जाता है। इस दीप को ही दीपगर्भ या गर्भ दीप कहा जाता है।
यही शब्द अपभ्रंश होते-होते गरबा बन गया।इस गर्भ दीप के ऊपर एक नारियल रखा जाता
है। नवरात्र की पहली रात्री गरबा की स्थापना कर उसमें ज्योति प्रज्वलित की जाती
है।
इसके बाद महिलाएं
इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। गरबा नृत्य में ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और
मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल देने के लिए किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर
नृत्य करती हैं। इस दौरान देवी के गीत गाए जाते हैं।
अगर नवरात्रि में
गुजरातियों के पारंपरिक नृत्य गरबा में जाने की तैयारी कर रही हैं तो क्यों न कुछ
गुजराती स्टाइल हो जाए। इस नवरात्रि गरबा के दौरान लड़कियों में पारंपरिक कपड़ों
ज्वैलरी और बॉडी कलर पेंटिंग का खासा क्रेज है।
नवमी के दिन लोग
गाते, ढोल ताशे बजाते, गरबा करते घटस्थापन का नजदीक के मंदिर में
विसर्जन करने जाते हैं. नवरात्र पर्व मां अंबे दुर्गा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने
तथा युवा दिलों में मौज-मस्ती के साथ गराबा-डांडिया खेलने और अपनी संस्कृती से
जुड़ने का सुनहरा अवसर भी है.
यहां शनिवार से
नवरात्र में माता का पंडाल सजाकर युवक-युवतियां पारंपरिक वस्त्र जैसे कि
कुर्ता-धोती, कोटी, घाघरा (चणिया)-चोली, कांच और कौड़ियां जड़ी पोशाक पहन कर पारंपरिक नृत्य डांडिया
और ‘सनेडो सनेडो लाल लाल
सनेडो’, ‘अंबा आवो तो रमीये’
‘गाते हुए गरबा खेलेंगे.
इस पर्व पर
रेस्टोरेंट और खानपान के सामान की दुकानें रात एक बजे तक खुली रहती हैं. डॉक्टरों
के अनुसार जिनके पास कसरत का समय नहीं है उनके लिए माताजी की भक्ति के साथ-साथ
गरबा खेल कर शरीर की केलोरी व्यय कर वजन घटाने का भी उचित अवसर है. गरबा खेलते हुए
डिहाइड्रेशन से बचने के लिए आहार का ध्यान रखना भी उतना ही जरूरी है.
5 Comments
इन दिनों गरबे के धूम हमारे भोपाल में भी खूब है।
ReplyDeleteजय माँ दुर्गे
आपको दुर्गोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाये
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ कहाँ से चले थे कहाँ आ गये हैं - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDelete8 वर्ष अहमदाबाद में रहा हूँ और इस संस्कृति का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त किया है ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सांस्कृतिक पोस्ट
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए आप सभी को बहुत- बहुत धन्यवाद् , बहुत दिन बाद इस पेज पर आ रहा हूँ दरअसल कुछ दिन से मै अपनी ये एक ई कामर्स वेबसाइट तैयार कर रहा था http://www.99swadeshi.com/ आप सभी का स्वागत है कृपया इस वेब पेज पर हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करें.
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