प्राचीन
काल में धनतेरस के दिन वैद्य लोग विधि-विधान से धन्वंतरि की सामूहिक पूजा-अर्चना करते
थे। आयुर्वेद के विकास के संबंध में गंभीर गोष्ठिïयों
के आयोजन होते थे जिसमें वैद्यगण अपनी समस्याओं और अनुभवों का आदान-प्रदान करते थे।
किंतु बीसवीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में, आयुर्वेद
का महत्व घटने लगा,
क्योंकि इस समय तक भारतीय
समाज में अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों का ऐसा वर्ग विकसित हो चुका था जो स्थानीय ज्ञान-विज्ञान
को हेय दृष्टि से देखता था। फलस्वरूप अंग्रेजों के साथ आई तात्कालिक लाभ देने वाली, ‘एलोपैथी’ हाथों-हाथों
ली जाने लगी। एलोपैथी की आंधी में सदियों पुरानी
प्रकृति से जुड़ी आयुर्वेद चिकित्सा पूरी तरह ध्वस्त हो गई ।
उज्जैन
के सम्राट विक्रमादित्य के नौ रत्नों में जिन
धन्वंतरि का प्रमाण मिलता है वह इसी परंपरा के प्रदेय हैं। धन्वंतरि परंपरा के अंतर्गत
आयुर्वेद में औषधि विज्ञान के क्षेत्र को इतना व्यापक बनाया गया था कि उस समय कोई ऐसा
रोग नहीं था जिसका निदान इस शास्त्र में न रहा हो। प्राचीन काल में यहां ऐसे गुणी और
निपुण चिकित्सक थे जिनकी ख्याति देश-देशांतरों में फैली थी। रोम, मिश्र, फारस, यूनान तक के रोगी इनके पास आते थे। आयुर्वेद
सिर्फ शारीरिक चिकित्सा का शास्त्र नहीं है बल्कि यह मनोदैहिक स्तर पर आचार-विचार और
प्राकृतिक चर्या के माध्यम से स्वास्थ्यपूर्ण जीवन के रहस्यों से जन-जन को परिचित कराता
है। प्राचीन में धन्वंतरि की एक परंपरा विकसित हो गई थी, योग्य आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि के ही नाम
से उपाधि दी जाने लगी थी।
प्रथा
धन्वन्तरी
जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चुकि कलश लेकर
प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता
के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है।
इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों
को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
दीपोत्सव
से दो दिन पूर्व मनाया जाने वाला ‘धनतेरस’ आज
सिर्फ खरीदने - बेचने का त्यौहार बन गया है ।
उच्च आय वर्ग के व्यक्ति सर्राफे में सोना-चांदी खरीदते हैं तो मध्य वर्गीय
जन ठठेरों के यहां से बर्तन,
लक्ष्मी- गणेश की मूर्तियां
भी आज के दिन खरीदने का प्रचलन है। लोक मानस में बर्तन क्रय करने का विशेष महात्म्य
है। निर्धन व्यक्ति भी और कुछ न सही, एक
कटोरी या चम्मच खरीदता है । धनतेरस के अवसर
पर क्रय करना लक्ष्मी के आह्वान का प्रतीक बन चुका है। इस दिन लोग व्यापार में भी उधार
के लेन-देन से बचते हैं।
पांच
दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। यमराज के एक दूत ने बातों ही
बातों में यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का उपाय है क्या। इस प्रश्न
का उत्तर देते हुए यमराज ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा
में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस
की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के
नाम पर व्रत भी रखते हैं। इसी कारण धनतेरस की पूरी रात रोशनी की जाती है।
कथा
प्रचीन
समय में हेम नाम के एक राजा थे,
ईश्वर की कृपा से उन्हें
पुत्र हुआ। ’योतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो
पता चला कि बालक के विवाह के ठीक चार दिन बाद उसकी सांप के काटने से अकाल मृत्यु हो जाएगी। राजा यह
जानकर बहुत दुखी हुआ। उसने राजकुमार को ऐसी जगह भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई
भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर
मोहित हो गए और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
हिम
की पुत्रवधू को जब इस बात का पता चला तो उसने निश्चय किया कि वह हर हाल में अपने पति
को यम के कोप से बचाएगी। राजकुमारी मां लक्ष्मी की बड़ी भक्त थीं। उसको भी अपने पति
पर आने वाली विपत्ति के बारे में पता चल गया। राजकुमारी ने चौथे दिन का इंतजार पूरी
तैयारी के साथ किया।
विवाह
के बाद विधि का विधान सामने आया और यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे।
शादी
के चौथे दिन उसने पति के कमरे के बाहर घर के सभी जेवर और सोने-चांदी के सिक्कों का
ढेर बनाकर उसे पहाड़ का रूप दे दिया और जिस रास्ते से सांप के आने की आशंका थी, उसने वहां सोने-चांदी के सिक्के और हीरे-जवाहरात
आदि बिछा दिए। पूरे घर को रोशनी से जगमगा दिया गया, यानी
सांप के आने के लिए कमरे में कोई रास्ता अंधेरा नहीं छोड़ा गया। इतना ही नहीं, राजकुमारी ने अपने पति को जगाए रखने के लिए
उसे पहले कहानी सुनाई और फिर गीत गाने लगी ताकि उसे नींद नहीं आए।
इसी
दौरान जब मृत्यु के देवता यमराज ने सांप का रूप धारण करके कमरे में प्रवेश करने की
कोशिश की, तो रोशनी की वजह से उनकी आंखें चुंधिया गईं।
इस कारण सांप दूसरा रास्ता खोजने लगा और रेंगते हुए उस जगह पहुंच गया, जहां सोने तथा चांदी के सिक्के रखे हुए थे।
डसने का मौका न मिलता देख,
विषधर भी वहीं कुंडली
लगाकर बैठ गया और राजकुमारी के गाने सुनने लगा। इसी बीच सूर्य देव ने दस्तक दी यानी
सुबह हो गई। इस तरह पूरी रात बीत गई। अगली सुबह सांप को लौटना पड़ा। यम देवता वापस
जा चुके थे। इस तरह राजकुमारी ने अपनी पति को मौत के पंजे में पहुंचने से पहले ही छुड़ा
लिया। यह घटना जिस दिन घटी थी,
वह धनतेरस का दिन था, इसलिए इस दिन को ‘यम दीपदान’ भी कहते हैं।
अब
बात करते है आज की धनतेरस के बारे में जिसे बड़े -बड़े पंडितों ने बड़ी -बड़ी घोशनाए की
है -
धनतेरस
पर मंगलवार होने की वजह से भौम प्रदोष का योग बन रहा है। इस दिन मंगल दोष निवारण के
लिए शुभ है और इस दिन भात पूजन कराना श्रेयस्कर माना जा रहा है । बर्तन के साथ ही धातु से जुड़े सामानों
की खरीदारी शुभकर होगी।
संतोष
रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वंतरि जो चिकित्सा के देवता हैं, अत: इस दिन उनसे सेहत और समृद्धि रूपी धन
की कामना करना चाहिए।
ऋतु-परिवर्तन
के साथ आहार-व्यवहार में बदलाव की संस्कृति हेय बनती चली गयी। ऐसी स्थिति में प्रकृति
के अनुशासन में बंधकर जीवन जीने का संदेश लाने वाली धन्वंतरि त्रयोदशी अपनी अस्तित्व
रक्षा के लिए दीपावली की शरणागत हैं।
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