अक्षय - आंवला नवमी पूजा, आंवला के पेड़ की पूजा

 

कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी कहा जाता है। आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु तथा शिवजी विद्यमान होते है। इस दिन व्रत  किया जाता है। इस दिन किये जाने वाले व्रत ,पूजन , तर्पण आदि का फल अक्षय होता है यानि इनका पुण्य समाप्त नहीं होता। कई जन्मो तक इसका पुण्य मिलता है। इसीलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते है।
इस वर्ष आंवला नवमी 8 नवम्बर 2016 को है
पूजा का शुभ समय – सुबह 6 : 53 से  12 :12 तक है
अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। 

अक्षय नवमी को ही भगवान श्री कृष्ण ने कंस-वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं।

अक्षय नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।

कुम्हड़े व आभूषण का दान :- 
आंवला नवमी के दिन श्रद्घालुओं द्वारा विशेष तौर पर ब्राह्मणों को कुम्हड़ा दान किया जाता है। मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को बीज युक्त कुम्हणा दान करने पर कुम्हड़े की बीज में जितने बीज होते हैं, उतने ही साल तक दानदाता को स्वर्ग में रहने की जगह मिलती है। 

इस दिन ब्राह्मणों को सोने-चांदी भी दान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ब्राह्मण को सोना-चांदी दान करने पर दान किए गए सोने-चांदी से छः गुना सोने-चांदी प्राप्त होता है।  

वैसे आंवले के महत्व को वैज्ञानिक भी मान्यता देते हैं। आंवले में विटामिन सी की भरमूर मात्रा होती है। इसीलिए कार्तिक शुक्ल नवमी पर श्रद्घालु आंवले के पेड़ की पूजा करके इसी पेड़ की छांव में भोजन ग्रहण करते है भोजन करते समय पूर्व दिशा में मुँह रखना चाहिए। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना और पेड़ के नीचे भोजन करना ,आंवले खाना अत्यंत फायदेमंद माना जाता है। 

आंवला नवमी के दिन सुबह नहा धोकर पूर्व की और मुंह करके आँवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। पेड़ की जड़ में दूध की धार देकर, पेड़ के चारो ओर सूत लपेट कर कपूर या घी की बत्ती से आरती करके एक सौ आठ परिक्रमा करनी चाहिए।  यदि किसी कारण से इतनी परिक्रमा लगाना सम्भव न हो तो आठ परिक्रमा लगाकर हाथ जोड़ लेने चाहिए।

पूजन सामग्री में जल , रोली , चावल , गुड़ , पताशे , दीपक, ब्लाउज आँवला और दक्षिणा होने चाहिए। ब्राह्मण- ब्राह्मणी को जोड़े से जिमाकर अपनी सुविधा व श्रद्धानुसार साड़ी , ब्लाउज़ , दक्षिणा आदि देनी चाहिए। भोजन में आँवला अवश्य रखना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करे।

इस दिन एक समय भोजन करके व्रत करे और भोजन में आँवला अवश्य शामिल करे यदि सम्भव हो तो आँवले के पेड़ के नीचे भोजन करे। इस दिन कुष्मांड (काशीफल /कददू ) में गुप्तदान (सोना ,चाँदी ,रुपया ) रख कर अगरबत्ती ,फूल, रोली,चावल से पूजा कर गाय का घी ,अन्न, फल, दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को देने से विशेष फल मिलता है इसीलिए इसे कुष्मांड नवमी भी कहते है। इस दिन गुप्तदान व आँवला दान करना चाहिए।

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