हिन्दू धर्म में शिखा (चोटी) का महत्व

हिन्दू धर्म का छोटे से छोटा सिध्दांत,छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी हैं। शिखा का महत्व संस्कृति में अंकुश के समान है। यह हमारे ऊपर आदर्श और सिद्धांतों का अंकुश है। इससे मस्तिक में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं। प्रचीन समय में विद्या अध्ययन के समय निद्रा न आये इसलिए उसे दीवाल में गढ़ी खूंटी में बांध देते थे नीद के झोंके में वह खीच जाती और विद्यार्थी जाग जाता था।। जैसे घङी के छोटे पुर्जे की जगह बडा पुर्जा काम नहीं कर सकता क्योंकि भले वह छोटा हैं परन्तु उसकी अपनी महत्ता हैं, ऐसे ही शिखा की भी अपनी महत्ता हैं। शिखा न रखने से हम जिस लाभ से वंचित रह जाते हैं, उसकी पूर्ति अन्यकिसी साधन से नहीं हो सकती।

पूजा-पाठ के समय शिखा में गाँठ लगाकर रखने से मस्तिक में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकल पाती हैं। इनके अंतर्मुख हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोत्तरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं। 

मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से निकलती है .ये द्वार है--> दो आँख ,दो कान ,दो नासिका छिद्र, दो निचे के द्वार, एक मुंह और दसवा द्वार है सहस्रार चक्र . इसी स्थान पर शिखा होती है

'हरिवंशपुराण' में एक कथा आती हैं। हैहय व तालजंघ वंश के राजाओं ने शक, यवन, काम्बोज पारद आदि राजाओं को साथ लेकर राजा बाहू का राज्य छीन लिया। राजा बाहु अपनी पत्नी के साथ वन में चला गया। वहाँ राजा की मृत्यु हो गयी। महर्षिऔर्व ने उसकी गर्भवती पत्नी की रक्षा की और उसे अपने आश्रम में ले आये। वहाँ उसने एक पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर राजा सगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। राजा सगर ने महर्षि और्व से शस्त्र और शास्त्र विद्या सीखीं। समय पाकर राजा सगरने हैहयों को मार डाला और फिर शक, यवन, काम्बोज, पारद, आदि राजाओं को भी मारने का निश्चय किया। ये शक, यवन आदि राजा महर्षि वसिष्ठ की शरण में चले गये। महर्षि वसिष्ठ ने उन्हें कुछ शर्तों पर उन्हें अभयदान दे दिया। और सगर को आज्ञा दी कि वे उनको न मारे। राजा सगर अपनी प्रतिज्ञा भी नहीं छोङ सकते थे और महर्षि वसिष्ठ जी की आज्ञा भी नहीं टाल सकते थे। अत: उन्होंने उन राजाओं का सिर शिखासहित मुँडवाकर उनकों छोङ दिया।

प्राचीन काल में किसीकी शिखा काट देना मृत्युदण्ड के समान माना जाता था। बङे दुख की बात हैं कि आज हिन्दु लोग अपने हाथों से अपनी शिखा काट रहे है। यह गुलामी की पहचान हैं। शिखा हिन्दुत्व की पहचान हैं। यह आपके धर्म और संस्कृतिकी रक्षक हैं। शिखा के विशेष महत्व के कारण ही हिन्दुओं ने यवन शासन के दौरान अपनी शिखा की रक्षा के लिए सिर कटवा दिये पर शिखा नहीं कटवायी।

डा॰ हाय्वमन कहते है -''मैने कई वर्ष भारत मे रहकर भारतीय संस्कृति क अध्ययन किया हैं ,यहाँ के निवासी बहुत काल से चोटी रखते हैं , जिसका वर्णन वेदों में भी मिलता हैं। दक्षिण में तो आधे सिर पर 'गोखुर' के समान चोटी रखते हैं ।उनकी बुध्दि की विलक्षणता देखकर मैं अत्यंत प्रभावित हुआ हुँ। अवश्य ही बौध्दिक विकास में चोटी बङी सहायता देती हैं । सिर पर चोटी रखना बढा लाभदायक हैं । मेरा तो हिन्दु धर्म में अगाध विश्वास हैं और मैं चोटी रखने का कायल हो गया हूँ । "
प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा॰ आई॰ ई क्लार्क एम॰ डी ने कहा हैं " मैंने जबसे इस विज्ञान की खोज की हैं तब से मुझे विश्वास हो गया हैं कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण हैं। चोटी रखना हिन्दू धर्म ही नहीं , सुषुम्ना के केद्रों की रक्षा केलिये ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार हैं।"
इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वान मि॰ अर्ल थामस लिखते हैं की "सुषुम्नाकी रक्षा हिन्दु लोग चोटी रखकर करते हैं जब्की अन्य देशों में लोग सिर पर लम्बे बाल रखकर या हैट पहनकर करते हैं। इन सब में चोटी रखना सबसे लाभकारी हैं। किसी भीप्रकार से सुषुम्ना की रक्षा करना जरुरी हैं।"
वास्तव में मानव-शरीर को प्रकृति ने इतना सबल बनाया हैं की वह बङे से बङे आघात को भी सहन करके रह जाता हैं परन्तु शरीर में कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिन पर आघात होने से मनुष्य की तत्काल मृत्यु हो सकती हैं। इन्हें मर्म-स्थान कहाजाता हैं। शिखा के अधोभाग में भी मर्म-स्थान होता हैं, जिसके लिये सुश्रुताचार्य ने लिखा हैं
मस्तकाभ्यन्तरो परिष्टात् शिरा सन्धि सन्निपातों ।
रोमावर्तोऽधिपतिस्तत्रपि सधो मरण्म् ।
अर्थात् मस्तक के भीतर ऊपर जहाँ बालों का आवर्त(भँवर) होता हैं, वहाँ संपूर्ण नाङियों व संधियों का मेल हैं, उसे 'अधिपतिमर्म' कहा जाता हैं।यहाँ चोट लगने से तत्काल मृत्यु हो जाती हैं
(सुश्रुत संहिता शारीरस्थानम् : ६.२८)
सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते हैं। मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों - कान, नाक, जीभ, आँख आदि का संबंध हैं और कामेन्द्रियों - हाथ, पैर,गुदा,इन्द्रिय आदि का संबंध मस्तुलिंग से हैं मस्तिष्क व मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते हैं उतनीही ज्ञानेन्द्रियों और कामेन्द्रियों - की शक्ति बढती हैं। मस्तिष्क ठंडक चाहता हैं और मस्तुलिंग गर्मी मस्तिष्क को ठंडक पहुँचाने के लिये क्षौर कर्म करवाना और मस्तुलिंग को गर्मी पहुँचाने के लिये गोखुर के परिमाण के बाल रखना आवश्यक होता हैं ।बाल कुचालक हैं, अत: चोटी के लम्बे बाल बाहर की अनावश्यक गर्मी या ठंडक से मस्तुलिंग की रक्षा करते हैं
शिखा रखने के अन्य निम्न लाभ बताये गये हैं -
  1. शिखा रखने तथा इसके नियमों का यथावत् पालन करने से सद्बुद्धि , सद्विचारादि की प्राप्ति होती हैं।
  2. आत्मशक्ति प्रबल बनती हैं।
  3. मनुष्य धार्मिक , सात्विक व संयमी बना रहता हैं।
  4. लौकिक - पारलौकिक कार्यों मे सफलता मिलती हैं।
  5. सभी देवी देवता मनुष्य की रक्षा करते हैं।
  6. सुषुम्ना रक्षा से मनुष्य स्वस्थ,बलिष्ठ ,तेजस्वी और दीर्घायु होता हैं।
  7. नेत्र्ज्योति सुरक्षित रहती हैं।

यजुर्वेद में शिखा को इंद्रयोनि कहा गया है। कर्म, ज्ञान और इच्छा प्रवर्तक ऊर्जा, ब्रह्मरंध्र के माध्यम से इंद्रियों को प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में शिखा मनुष्य का एंटेना है। जिस तरह दूरदर्शन या आकाशवाणी में प्रक्षेपित तरंगों को पकडऩे के लिए एंटेना का उपयोग किया जाता है, उसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए शिखा का प्रयोग करते हैं।

मानव उत्क्रांति का सर्वोच्च पड़ाव आत्म- साक्षात्कार है। यह साक्षात्कार सुषुम्ना के माध्यम से होता है। सुषुम्ना नाड़ी अपान मार्ग से होती हुई मस्तक के जरिए ब्रह्मरंध्र में विलीन हो जाती है। ब्रह्मरंध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। मस्तक के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मंध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। इसलिए उतने भाग में केश होना बहुत आवश्यक है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केश राशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है।

इस प्रकार धार्मिक,सांस्कृतिक,वैज्ञानिक सभी द्रष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट होती हैं। परंतु आज हिन्दू लोग पाश्चात्यों के चक्कर में पङकर फैशनेबल दिखने की होङ में शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपनी संस्कृति का त्याग कर डालते हैं।लोग हँसी उङाये, पागल कहे तो सब सह लो पर धर्म का त्याग मत करो। मनुष्य मात्र का कल्याण चाहने वाली अपनी हिन्दू संस्कृति नष्ट हो रही हैं। हिन्दु स्वयं ही अपनी संस्कृति का नाश करेगा तो रक्षा कौन करेगा।

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5 Comments

  1. Nicely expressed ....:-)

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